॥व्यर्थ वाद विवाद॥
धर्म तत्व जाने नहीं, करे समय बर्बाद॥1॥
सद्भाग्य को स्वश्रम कहे, दुर्भाग्य पर विवाद ।
कर्मफ़ल जाने नहिं, व्यर्थ तर्क सम्वाद ॥2॥
कल तक जो बोते रहे, काट रहे है लोग ।
कर्मों के अनुरूप ही, भुगत रहे हैं भोग ॥3॥
कर्मों के मत पुछ रे, कैसे कैसे योग ।
भ्रांति कि हम भोग रहे, पर हमें भोगते भोग ॥4॥
ज्ञान बिना सब विफ़ल है, तन मन वाणी योग।
ज्ञान सहित आराधना, अक्षय सुख संयोग॥5॥
swaarth
29/07/2010 at 7:16 पूर्वाह्न
अच्छे दोहे हैं
Shah Nawaz
29/07/2010 at 10:17 पूर्वाह्न
अच्छे और एकदम सटीक दोहे हैं…… बहुत-बहुत धन्यवाद! क्या आपने स्वयं लिखें हैं?
सुज्ञ
29/07/2010 at 10:22 पूर्वाह्न
शाह नवाज साहब,शुक्रिया।इन दोहो पर क्या और कोई क्लेम कर रहा है ?
Jeetu
29/07/2010 at 11:52 पूर्वाह्न
कृपया नीचे लिखे लिंक पर मेरी टिप्पणी पढने का कष्ट करें :-http://www.janokti.com/2010/07/28/%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B2%E0%A5%89%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%B8/comment-page-1/#comment-2286
राजभाषा हिंदी
29/07/2010 at 12:04 अपराह्न
बहुत अच्छी प्रस्तुति।राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सुज्ञ
29/07/2010 at 2:10 अपराह्न
अवश्य जीतू जी,आप की पदछाप का शुक्रिया!!
पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
29/07/2010 at 7:07 अपराह्न
ज्ञानी उलझे तर्क में, कर कर वाद विवाद।धर्म तत्व जाने नहिं, करे समय बर्बाद॥1॥सद्भाग्य को स्वश्रम कहे, दुर्भाग्य पर विवाद ।कर्मफ़ल जाने नहिं, व्यर्थ तर्क सम्वाद ॥2॥वाह्! अति सुन्दर दोहावली….जिसने धर्म तत्व जान लिया तो वो भला तर्क-वितर्क में क्यूं उलझेगा. वाद-प्रतिवाद तो वही करेगा जो अज्ञानी होगा….जिसकी आँखों पर माया भ्रम का पर्दा पडा है.
सुज्ञ
29/07/2010 at 8:00 अपराह्न
शर्मा जी,आप गहरे पेठ, भाव पकड लाए,आभार आपका, आपने मेरे भावों को आवाज दी।
Shah Nawaz
29/07/2010 at 9:00 अपराह्न
कोई क्लेम नहीं कर रहा है भाई…… मुझे दोहे बहुत पसंद आए इसलिए कन्फर्म कर रहा था…. 🙂
सुज्ञ
29/07/2010 at 10:00 अपराह्न
शाह नवाज़ साहब,अन्यथा न लें,मैने भी अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकृति देने हेतू ही वह वाक्य रचना की थी कि 'कोई क्लेम नहीं कर रहा'बधाई आपकी पसन्द भी सात्विक है,आपका आभार मित्र
सुज्ञ
29/07/2010 at 10:46 अपराह्न
एक आस्तिकता नास्तिकता विवाद पर मैने कुछ यह टिप्पनी की………मैं ईश्वर के भार को नहिं ढोता हूं,फ़िर भी नास्तिकता का रोना नहिं रोता हूं।मुझे पूर्ण भरोसा है मेरे,कृत कर्म ही अनायास मुझे असफ़लता दे जाते है।आगे सफ़लता के विश्वास में,शुभ कर्म किये जाता हूं।मैं ईश्वर के भार को नहिं ढोता हूं,फ़िर भी नास्तिकता का रोना नहिं रोता हूं।
anshumala
29/07/2010 at 11:00 अपराह्न
व्यर्थ का वाद विवाद करने वाला ज्ञानी कहा हुआ वो तो अज्ञानी हुआ | कर्मो का फल कहा मिलता है देखिये देश के भ्रष्ट नेताओ अफसरों को सब के सब मजे से भोग रहे है इनको इनके कर्मो का फल कब मिलेगा क्या मरने के बाद ही | बहुत अच्छे दोहे |
सुज्ञ
29/07/2010 at 11:17 अपराह्न
अन्शुमाला जी,कर्म सिद्धांत गहन है,इतना ही अटल भी।भ्रष्ट नेताओ अफसरों के जो मजे हम देख रहे हैं सम्भव है उनके लिये भारी दुखों का प्रबंध हो रहा हो,वे किसी पूर्वकृत अच्छे कर्म का उपभोग कर उसे समाप्त कर रहे हों, क्षणिक दृश्यमान मज़े को सुख मान लेना भ्रम भी हो सकता है।बाहर से घमंड व रूतबा दिखाने वाले अंदर से त्राहित भयभीत भी हो सकते है।दोहों की प्रशस्ति के लिये आभार
सुज्ञ
29/07/2010 at 11:30 अपराह्न
पंडित जी,अन्शुमाला जी,आपने ध्यान दिलाया तो 'ज्ञानी' शब्द दोहे में बदल रहा हूं।यह वाकई त्रुटि थी। बहूत बहूत आभार।
दीर्घतमा
30/07/2010 at 7:39 पूर्वाह्न
आप तो बहुत ही अच्छे कबी लग रहे है धर्म क़े बिबाद पर कबिता क़े लिएबहुत-बहुतधन्यवाद.
सुज्ञ
30/07/2010 at 11:24 पूर्वाह्न
मुझे प्रोत्साहन का कोई भी अवसर नहिं जाने देते आप सुबेदार जीआभार व्यक्त करता हूं।
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
30/07/2010 at 1:51 अपराह्न
वाद विवाद पर अच्छा संवाद स्थापित किया है आपने। बधाई।…………..पाँच मुँह वाला नाग?साइंस ब्लॉगिंग पर 5 दिवसीय कार्यशाला।
सुज्ञ
30/07/2010 at 2:26 अपराह्न
आभार जाकिर भाई।
वाणी गीत
30/07/2010 at 6:00 अपराह्न
ज्ञान बिना सब विफल है …धर्म तत्त्व जाने नहीं …करे समय बर्बाद …बहुत अच्छी ज्ञानवान रचना …!
सुज्ञ
30/07/2010 at 6:09 अपराह्न
वाणी जी,आभार आपका