सिर का शृंगार तभी है, जब सत्य समक्ष नतमस्तक हो।
भाल का शृंगार तभी है, जब यश दीन दुखी के मुख हो॥
नयनों का शृंगार तभी है, जब वह करूणा से सज़ल हो।
नाक का शृंगार तभी है, जब वह परोपकार से उत्तंग हो॥
कान का शृंगार तभी है, जब वह आलोचना सुश्रुत हो।
होठो का शृंगार तभी है, हिले तो मधूर वचन प्रकट हो॥
गले का शृंगार तभी है, जब विनय पूर्ण नम जाय।
सीने का शृंगार तभी है, जिसमें आत्मगौरव बस जाय॥
हाथों का शृंगार तभी है, पीडित सहायता में बढ जाए।
हथेली का शृंगार तभी है, मिलन पर प्रेम को पढ जाए॥
कमर का शृंगार तभी है, जब बल मर्यादा से खाए।
पैरों का शृंगार तभी है, तत्क्षण मदद में उठ जाए॥
M VERMA
27/07/2010 at 8:31 अपराह्न
वाह क्या सुन्दर सूक्तिमय बातें हैं
अमित शर्मा
27/07/2010 at 8:56 अपराह्न
बहुत शिक्षाप्रद रचना, अद्भुत
सुज्ञ
27/07/2010 at 9:12 अपराह्न
आभार, श्री वर्मा जी एवं श्री शर्मा जी
सुज्ञ
27/07/2010 at 9:14 अपराह्न
मुसलमान बनने के जितने लाभ सलीम बता रहे है,इतने तो हम शृंगार पर यूं ही पा लेते है।
honesty project democracy
27/07/2010 at 9:19 अपराह्न
उम्दा प्रेरक प्रस्तुती,वाह शानदार …
अनामिका की सदायें ......
27/07/2010 at 9:42 अपराह्न
बहुत अच्छा लगा इस प्रस्तुति का पढ़ कर.आभार.
सुज्ञ
27/07/2010 at 10:33 अपराह्न
प्रोत्साहन से ही लिख पाता हूं
राजेन्द्र मीणा
28/07/2010 at 12:53 अपराह्न
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
राजेन्द्र मीणा
28/07/2010 at 12:58 अपराह्न
अच्छे शब्द ,प्रेरणादायी सन्देश,शशक्त भाषाशैली ,लेखन की परिपक्वता ,विचारणीय और,… कितना कुछ लिए हुए है ये अकेली रचना ,,,,जीतनी तारीफ़ की जाए कम ही होगी ,,,वाकई अदभुत…..बधाई स्वीकारे …!!! आपके ब्लॉग की प्रथम यात्रा की ,,,,अच्छा लगा ,,,पर अफ़सोस भी ,,,देर से जो आया ,,,समय निकालकर पिछली रचनाएँ भी पढता हूँ ,,,फिर से बधाई और आभार …! कुछ ऐसा ही यहाँ है ,,,समय हो तो एक नज़र डाले http://athaah.blogspot.com/2010/05/blog-post_28.html
sakshatkar-tv
28/07/2010 at 1:05 अपराह्न
http://www.tahelka.co.in हेल्लो मेरे दोस्तों क्या आप http://www.tahelka.co.in हिंदी -अंग्रेजी ब्लॉग लेखकों का एग्रिगेटर को भूल गए । आप अपने ब्लॉग – साईट को Tahelka.co.in जोड़े । इसके लिए आपको हमारी साईट http://www.tahelka.co.in पर जाकर sumbit form को भरना करना होगा । बाकी का काम हमारा ?
वन्दना
28/07/2010 at 5:44 अपराह्न
वाह्……………बहुत ही शिक्षाप्रद सूक्तियाँ।
सुज्ञ
29/07/2010 at 2:56 पूर्वाह्न
राजेन्द्र जी,इस सुन्दर प्रेरक टिप्पनी के लिये, लाख आभार
सुज्ञ
29/07/2010 at 2:57 पूर्वाह्न
वन्दना जी,सूक्ति प्रशस्ति के हृदय से आभार!!
दीर्घतमा
30/07/2010 at 7:12 पूर्वाह्न
कबिता ने तो दिल को छू लिया यथार्थ क़े नजदीक मनुष्य ऐसा ही बने भगवान से यही बिनम्र प्रार्थना.धन्यवाद
संजय भास्कर
21/09/2010 at 12:23 अपराह्न
प्रेरणादायी सन्देश……….शशक्त भाषाशैली ,
Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
26/03/2012 at 7:42 पूर्वाह्न
सुन्दर सन्देश, आभार!