विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी
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माधव
27/07/2010 at 5:41 अपराह्न
sundar
Arvind Mishra
27/07/2010 at 6:07 अपराह्न
सचमुच जीवन एक सुयोग ही तो है !
सुज्ञ
27/07/2010 at 6:58 अपराह्न
अरविन्द जी,आपके आने से मन हर्षित हो गया।
Udan Tashtari
27/07/2010 at 8:22 अपराह्न
बहुत सुन्दर!
अमित शर्मा
27/07/2010 at 8:59 अपराह्न
@ साझा-निधि जग मानकर, यथा योग्य ही भोग ।सारे फसाद की जड़ ही आवश्यकता से अधिक संग्रह प्रवृत्ति है……….बेहतरीन ज्ञान
सुज्ञ
28/07/2010 at 1:35 पूर्वाह्न
समीर जी,अमीत जी, सही फ़र्माया आपने, यह जगत हमारे सहित सभी जीवों की सम्पत्ति है।सम्पदा का हम दोहन न करें,आवश्यक उपयोग ही करें। यही भाव था।