चलिये चल कर देखिये, सच का दामन थाम ।
साहस का यह काम है, किन्तु सुखद परिणाम ॥1॥
धर्म तत्व में मूढता, संसार तर्क में शूर ।
दुखदायक कारकों पर!, गारव और गरूर? ॥2॥
क्षमा भाव वरदान है, वैर भाव ही शाप ।
परोपकार बस पुण्य है, पर पीडन ही पाप ॥3॥
विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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दीर्घतमा
27/07/2010 at 6:59 पूर्वाह्न
आप तो भारतीय तत्वक्ज्ञान से युक्त कबिता लिख रहे है ,बहुत-बहुत धन्यवाद.
डा. अरुणा कपूर.
27/07/2010 at 12:25 अपराह्न
बहुत अच्छी शिक्षा दी गई है इस रचना में…धन्यवाद!
सुज्ञ
27/07/2010 at 1:05 अपराह्न
subedaar jishukriyaa!!
सुज्ञ
27/07/2010 at 1:06 अपराह्न
अरुणा जी,प्रोत्साहन के लिये आभार
Arpit Shrivastava
27/07/2010 at 2:48 अपराह्न
Bahut Prabhavshali Lekhan hai aapka
सुज्ञ
27/07/2010 at 3:30 अपराह्न
धन्यवाद!! अर्पित जी
Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
27/07/2010 at 4:13 अपराह्न
बहुत सुन्दर शिक्षाप्रद रचना ! आपकी भाषा और शैली प्रशंसनीय है !
सुज्ञ
27/07/2010 at 4:39 अपराह्न
इन्द्र जी,ब्लोग नामों की व्यस्तता के बीच आपने दर्शन दिये,अच्छ लगा !!
अमित शर्मा
27/07/2010 at 8:59 अपराह्न
बहुत अच्छी शिक्षा दी गई है इस रचना में…धन्यवाद!