आज के युग में उंच नीच समाप्त प्राय: है, ब्राह्मणवाद यह स्वीकार कर चुका है कि चारों ही वर्णों में भेद भाव एक त्रृटि थी। आज लगभग जातिआधारित भेदभाव गौण चुके है, डा. भीमराव अम्बेडकर का स्वप्न अब साकार हो चुका है, हिंदु ग्रन्थों के ये सब सन्दर्भ इतिहास बन चुके है, अब उन्हे बार बार उल्लेखित करना बुद्धिमानी नहिं है।
आज वही शोषित वर्ग, सत्ता में भागिदारी कर रहा है, प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन है, उद्ध्योग-व्यापार में सलग्न है।दलित,अपने सारे नागरिक अधिकारों सहित, विशेष अधिकारो का उपयोग करने में समर्थ है। अब नई पीढी से हजारों साल का हिसाब मांगना उचित नहिं है।
आज तो हर जाति में दो वर्ग बन गये हैं, एक जिनके पास सत्ता और समृद्धि हैं। तो दूसरा वर्ग सत्ता और समृद्धि से वंचित। दलितो में भी सत्ता और समृद्धि वाला वर्ग गरीब दलितों के शोषण पर ही अपनी सत्ता व समृद्धि कायम रखे हुए है।
गरीब दलित बिचारा विशेषाधिकारों के लिये आन्दोलन करता है,और उनके नेता उसी के परिणाम स्वरूप सत्ता भोगते है। ठीक उसी तरह जिस तरह सर्वहारा मजदूर वर्ग तो आन्दोलनों में ही व्यस्त रह्ता है और कम्युनिष्ट नेता वर्ग सत्ता सुख भोगते है।
नेता बनना किसी भी युग में फ़ायदे का सौदा रहा है।
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अमित शर्मा
28/06/2010 at 5:24 अपराह्न
बात तो वहीँ की वहीँ है…………………… कम से कम जाती व्यवस्था में अमीर गरीब का तो भेद नहीं था…………………… गरीबी की गली शायद ज्यादा बड़ी है!!!!!!!!!!!!!!!!!1