मैं अपनी पहली ही पोस्ट में आधी दुनिया के विषय को छूना चाहता हूँ, यह बात है महिला शक्ति की। क्योंकि आज अक्सर बात की जाती है महिला अधिकारों के बारे में, पुरुष से समानता के बारे में, नारी स्वतन्त्रा के बारे में।
महिलाओं के अधिकारो पर इतनी जागृति आई है, कि महिलाओं को सदा दमित शोषित करने वाला इस्लाम भी आयतों से खोज खोज कर स्वयं को महिला अधिकारों का पैरोकार दर्शाने का जी-तोड़ प्रयास कर रहा है। तो वहाँ इसाईयत नारी की स्वतन्त्रता एवं विकास का एकाधिकार दावा प्रस्तुत कर रहा है। और हिन्दुत्व तो मंत्रोचार ही कह रहा है कि हमने तो नारी को सदैव देवी की तरह पूजा है।
लेकिन धरातल पर शोषण और दमन आज भी जारी है। बस कुछ फ़र्क है तो वर्तमान में कुछ एक दमन और शोषण के किस्से प्रकाशित होते हैं। और बहुत से लोग पैरोकार बन कर आगे आते है।
कौन है ये लोग, क्या ये वाकई महिला अधिकारों पर चिन्तित है? क्या ये लोग महिलाओं के हितचिन्तक है? क्या वाकई कोई दर्द है इनके सीनों में?
मैं बताता हुं कौन हैं ये लोग?, और क्यों इतनी हाय-तौबा मचाते हैं. पहले तो हम विचार करते है, महिलाओ पर ये बन्दिशें और रोक कहां से आती है, निश्चित ही यह आती है धार्मिक संसकृति के नाम पर।
अब पुन: चलते है, कौन लोग है, जो तेज तर्रार आवाज उठाते है, महिलायें स्वयं?, नहीं!! बहुत से मामलों में तो महिलायें दिखाई ही नहीं देती। तो फिर कौन ये, ये है सेक्युलर मीडिया, सुडो-सेक्युलर,और कम्युनिस्ट्। क्योंकि इन्ही के पास है मक़सद। ये विचारधाराएँ धर्म को नहीं मानती, और इसी बहाने वे धर्म पर आरोप मढ़कर, इसी बहाने उसे हरानें का सुख भोगती हैं।
मेरा प्रयोजन धर्मों के बचाव पक्ष में खडा होना नहीं, और न ही मैं नारी अधिकारो के विरुद्ध हूँ। मेरी भावना है, एक सर्वथा भिन्न दृष्टि से देखा जाय, क्योंकि वास्तविकता आधारित चिन्तन के बिना इस समस्या का निवारण नहीं। जबकि इसके कथित आन्दोलनकारियों का मक़सद इस आग को जलते रखने में है।
कौन है जो कहते है, “कैसे भी कपडे पहने यह उनकी व्यक्तिगत पसन्द है।“ बात तो नारी हित की है पर मकसद जुदा, यह ‘नारी स्वतन्त्रता’ जैसे मीठे शब्दों से समाज को उन्मुक्त बनाकर, तहस नहस करने की मंशा रखते है। ताकि वे बिखरे समाज पर सत्ता कायम कर सके। स्वतंत्रता स्वछंद मानसिकता की एक विद्रुप चाल है। स्वछंदता पर अन्दर से गुदगुदी महसूस करते, रोमांच भोगते ये लोग दूसरों को केवल ग्राहक या वोट के रूप में देखते हैं।
फ़िरदौस ख़ान
13/06/2010 at 4:00 अपराह्न
अच्छी पोस्ट है…
indli
14/06/2010 at 10:17 अपराह्न
नमस्ते,आपका बलोग पढकर अच्चा लगा । आपके चिट्ठों को इंडलि में शामिल करने से अन्य कयी चिट्ठाकारों के सम्पर्क में आने की सम्भावना ज़्यादा हैं । एक बार इंडलि देखने से आपको भी यकीन हो जायेगा ।
दिलीप
14/06/2010 at 10:37 अपराह्न
ekdam satya vachan kahe…
Jandunia
15/06/2010 at 12:15 पूर्वाह्न
सार्थक पोस्ट
Udan Tashtari
15/06/2010 at 7:19 पूर्वाह्न
पहली ही पोस्ट में बड़ा हिम्मती विषय उठाया है इस ब्लॉगजगत के हिसाब से…शुभकामनाएँ. 🙂
Arvind Mishra
15/06/2010 at 5:11 अपराह्न
बिलकुल माकूल बात कही है आपने
सदा
22/05/2012 at 3:58 अपराह्न
कल 23/05/2012 को आपके ब्लॉग की प्रथम पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद! … तू हो गई है कितनी पराई …
सुज्ञ
22/05/2012 at 4:30 अपराह्न
ओह!! प्रथम पोस्ट? मेरी अपरिपक्वता की निशानी हो :)आपका बहुत बहुत आभार!!
Mukesh Kumar Sinha
23/05/2012 at 5:31 पूर्वाह्न
vihsay sochne layak hai..:)
यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)
23/05/2012 at 9:58 पूर्वाह्न
बहू अच्छा लिखे हैं सर!सादर