विचार वेदना की गहराई
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में, वो तिफ़्ल क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलते हैं
हितेन्द्र अनंत का दृष्टिकोण
पुरातत्व, मुद्राशास्त्र, इतिहास, यात्रा आदि पर Archaeology, Numismatics, History, Travel and so on
मैं, ज्ञानदत्त पाण्डेय, गाँव विक्रमपुर, जिला भदोही, उत्तरप्रदेश (भारत) में ग्रामीण जीवन जी रहा हूँ। मुख्य परिचालन प्रबंधक पद से रिटायर रेलवे अफसर। वैसे; ट्रेन के सैलून को छोड़ने के बाद गांव की पगडंडी पर साइकिल से चलने में कठिनाई नहीं हुई। 😊
चरित्र विकास
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जीवन में सफलता, समृद्धि, संतुष्टि और शांति स्थापित करने के मंत्र और ज्ञान-विज्ञान की जानकारी
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संजय भास्कर
27/05/2010 at 6:41 अपराह्न
welcome sir,blogjagat me apka swagat hai…
Sugya
31/05/2010 at 11:16 पूर्वाह्न
@ sanjay bhaskarThank you dear,
aarya
03/06/2010 at 8:59 अपराह्न
हंसराज जी !सादर वन्दे,आप ने मेरे ब्लाग सरस्वती नदी सभ्यता को पसंद किया इसके लिए आभार | मेरा दूसरा ब्लॉग आर्यश्री जिसपर मेरी गतिविधि ज्यादा रहती हैं, उसपर आयें | साथ ही साथ इस ब्लाग जगत में आपका मेरी तरफ से स्वागत और अभिनन्दन !रत्नेश त्रिपाठी
kunwarji's
07/06/2010 at 10:25 पूर्वाह्न
swaagat wali baat hai jikunwar ji,
E-Guru Rajeev
11/06/2010 at 8:04 पूर्वाह्न
हँसराज बन्धु, आपके दो ब्लॉग हैं परन्तु रचना भी तो लिखिये.आपकी लेखनी की धार देखने का मन है. :-)शुभकामनाएँ.
सुज्ञ
11/06/2010 at 1:48 अपराह्न
राजीव जी,हिन्दी ब्लोग जगत के द्वार पर ठिठका हु,चौपाली ब्लोगर बन्धुओं को परखने में ही रह गया। लेखक नहिं हुं,पर हिम्मत अवश्य करूंगा।
फ़िरदौस ख़ान
12/06/2010 at 8:08 अपराह्न
हार्दिक अभिनन्दन…
E-Guru Rajeev
12/06/2010 at 8:14 अपराह्न
उत्तिष्ठ, जाग्रत………सुज्ञ बन्धु.
JHAROKHA
13/06/2010 at 12:05 पूर्वाह्न
Hindi blog jagat men apka svagata hai.
सुज्ञ
13/06/2010 at 11:25 पूर्वाह्न
फ़िरदौस जी,पूनम जी,धन्यवाद आपका (नये आगन्तुक के लिये अपनापन प्रेरणा का हेतु है।)राजीव जी,जाग्रत तो हो रहा हुं,पर जगह बना पाऊंगा या नहिं।
JHAROKHA
13/06/2010 at 12:25 अपराह्न
aap mere blog par pahali bar aaye sach me bahut hi achcha laga .aapki kavita ki dhar to mere blog par hi dekhne ko mil gai.itana sundar shabdo ka chayan ek lekhak hi kar sakta hai. aapki rachna ka intjar rahega.sheshh shubh. poonam
जयराम “विप्लव” { jayram"viplav" }
13/06/2010 at 10:34 अपराह्न
" बाज़ार के बिस्तर पर स्खलित ज्ञान कभी क्रांति का जनक नहीं हो सकता "हिंदी चिट्ठाकारी की सरस और रहस्यमई दुनिया में राज-समाज और जन की आवाज "जनोक्ति.कॉम "आपके इस सुन्दर चिट्ठे का स्वागत करता है . चिट्ठे की सार्थकता को बनाये रखें . अपने राजनैतिक , सामाजिक , आर्थिक , सांस्कृतिक और मीडिया से जुडे आलेख , कविता , कहानियां , व्यंग आदि जनोक्ति पर पोस्ट करने के लिए नीचे दिए गये लिंक पर जाकर रजिस्टर करें . http://www.janokti.com/wp-login.php?action=register, जनोक्ति.कॉम http://www.janokti.com एक ऐसा हिंदी वेब पोर्टल है जो राज और समाज से जुडे विषयों पर जनपक्ष को पाठकों के सामने लाता है . हमारा प्रयास रोजाना 400 नये लोगों तक पहुँच रहा है . रोजाना नये-पुराने पाठकों की संख्या डेढ़ से दो हजार के बीच रहती है . 10 हजार के आस-पास पन्ने पढ़े जाते हैं . आप भी अपने कलम को अपना हथियार बनाइए और शामिल हो जाइए जनोक्ति परिवार में !
Dr. Purushottam Lal Meena Editor PRESSPALIKA
17/06/2010 at 7:39 अपराह्न
खुद्दार एवं देशभक्त लोगों का स्वागत है!सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने वाले हर व्यक्ति का स्वागत और सम्मान करना प्रत्येक भारतीय नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है। इसलिये हम प्रत्येक सृजनात्कम कार्य करने वाले के प्रशंसक एवं समर्थक हैं, खोखले आदर्श कागजी या अन्तरजाल के घोडे दौडाने से न तो मंजिल मिलती हैं और न बदलाव लाया जा सकता है। बदलाव के लिये नाइंसाफी के खिलाफ संघर्ष ही एक मात्र रास्ता है।अतः समाज सेवा या जागरूकता या किसी भी क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों को जानना बेहद जरूरी है कि इस देश में कानून का संरक्षण प्राप्त गुण्डों का राज कायम होता जा है। सरकार द्वारा जनता से टेक्स वूसला जाता है, देश का विकास एवं समाज का उत्थान करने के साथ-साथ जवाबदेह प्रशासनिक ढांचा खडा करने के लिये, लेकिन राजनेताओं के साथ-साथ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसरों द्वारा इस देश को और देश के लोकतन्त्र को हर तरह से पंगु बना दिया है।भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक (जनता के नौकर) कहा गया है, व्यवहार में लोक स्वामी बन बैठे हैं। सरकारी धन को भ्रष्टाचार के जरिये डकारना और जनता पर अत्याचार करना प्रशासन ने अपना कानूनी अधिकार समझ लिया है। कुछ स्वार्थी लोग इनका साथ देकर देश की अस्सी प्रतिशत जनता का कदम-कदम पर शोषण एवं तिरस्कार कर रहे हैं। ऐसे में, मैं प्रत्येक बुद्धिजीवी, संवेदनशील, सृजनशील, खुद्दार, देशभक्त और देश तथा अपने एवं भावी पीढियों के वर्तमान व भविष्य के प्रति संजीदा व्यक्ति से पूछना चाहता हूँ कि केवल दिखावटी बातें करके और अच्छी-अच्छी बातें लिखकर क्या हम हमारे मकसद में कामयाब हो सकते हैं? हमें समझना होगा कि आज देश में तानाशाही, जासूसी, नक्सलवाद, लूट, आदि जो कुछ भी गैर-कानूनी ताण्डव हो रहा है, उसका एक बडा कारण है, भारतीय प्रशासनिक सेवा के भ्रष्ट अफसरों के हाथ देश की सत्ता का होना।शहीद-ए-आजम भगत सिंह के आदर्शों को सामने रखकर 1993 में स्थापित-"भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान" (बास)- के सत्रह राज्यों में सेवारत 4300 से अधिक रजिस्टर्ड आजीवन सदस्यों की ओर से मैं दूसरा सवाल आपके समक्ष यह भी प्रस्तुत कर रहा हूँ कि-सरकारी कुर्सी पर बैठकर, भेदभाव, मनमानी, भ्रष्टाचार, अत्याचार, शोषण और गैर-कानूनी काम करने वाले लोक सेवकों को भारतीय दण्ड विधानों के तहत कठोर सजा नहीं मिलने के कारण आम व्यक्ति की प्रगति में रुकावट एवं देश की एकता, शान्ति, सम्प्रभुता और धर्म-निरपेक्षता को लगातार खतरा पैदा हो रहा है! क्या हम हमारे इन नौकरों (लोक सेवक से लोक स्वामी बन बैठे अफसरों) को यों हीं सहते रहेंगे?जो भी व्यक्ति इस संगठन से जुडना चाहे उसका स्वागत है और निःशुल्क सदस्यता फार्म प्राप्त करने के लिये निम्न पते पर लिखें या फोन पर बात करें :डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय अध्यक्षभ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास)राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यालय7, तँवर कॉलोनी, खातीपुरा रोड, जयपुर-302006 (राजस्थान)फोन : 0141-2222225 (सायं : 7 से 8) मो. 098285-02666E-mail : dr.purushottammeena@yahoo.in